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शुक्रवार, 23 जून 2017

वास्तु के इस नियम से होंगे मालामाल

Shri Ramchandra Sevadham Trust, Nawalgarhवास्तुशास्त्र में यदि सबसे अधिक वर्जित कोई दिशा मानी गई है तो वह है दक्षिण दिशा। आम लोगों के मन में भी दक्षिण दिशा को लेकर कई भ्रांतियां होती हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा का स्वामी यम है। इस दिशा के शुभ-अशुभ परिणाम स्त्रियों पर सबसे ज्यादा पड़ते हैं। इसका सबे पहला दुष्परिणाम तो यह है कि यदि आपने दक्षिणमुखी भवन बनवाना प्रारंभ किया, वैसे ही आर्थिक संकट खड़े होने लगते हैं। भवन निर्माण में धन की कमी बनी ही रहती है।

पश्चिम दिशा: भूलकर भी न करें ये गलतियां वरना... यदि दक्षिणमुखी भवन या भूमि खरीदना अनिवार्य हो ही जाए तो सबसे पहले उस भूखंड को किसी और व्यक्ति के नाम पर खरीद लें और यदि पहले से उस पर कुछ निर्माण है तो उसे तोड़ दें। उसके बाद पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर से भवन का निर्माण प्रारंभ करें। भवन पूरा बन जाने के बाद उसे अपने नाम करवा लें और गृहप्रवेश करें। हालांकि ऐसा नहीं हैकि दक्षिणमुखी भवन हमेशा ही बुरे परिणाम देता है। यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो दक्षिणमुखी भवन में भी सुख से रहा जा सकता है। आइए जानते हैं दक्षिणमुखी भवन से जुड़ी ऐसी ही कुछ अच्छी-बुरी बातें:

अच्छे परिणाम दक्षिणमुखी भूमि पर भवन बना रहे है तो ध्यान रखें दक्षिण भाग ऊंचा होना चाहिए। इससे उस भवन में रहने वाले स्वस्थ एवं सुखी होंगे। दक्षिण दिशा की भूमि ऊंची करके उस पर अटाला, बेकार का सामान रखने से शुभ परिणाम मिलेगा। भवन के सभी द्वार दक्षिणोन्मुखी ही होना चाहिए। ऐसा होने पर घर में संपन्नता आती है। दक्षिणी हिस्से में कमरे ऊंचे बनवाने चाहिए इससे मकान का मालिक ऐश्वर्य संपन्न होता है। दक्षिण दिशा के घर का पानी उत्तरी दिशा से होकर बाहर की ओर प्रवाहित हो तो धन लाभा होता है। ऐसे घर में रहने वाली स्त्रियों का स्वास्थ्य ठीक रहता है। घर के भीतर का पानी या बारिश का पानी उत्तर दिशा की ओर से बाहर निकलने का प्रबंध न हो तो यह जल पूर्वी दिशा से बाहर की ओर जाने की व्यवस्था करना चाहिए। ऐसा होने से उस भवन में रहने वाले लोग स्वस्थ रहते हैं।

बुरे परिणाम दक्षिणमुखी भवन में खाली जगह, बरामदे, घर के सभी कमरे आदि का दक्षिणी भाग नीचा हो तो उस घर में रहने वाली स्त्रियां बीमार बनी रहती हैं। उनकी आकस्मिक मृत्यु जैसे दुर्योग भी बनते हैं। क्षिण भाग में यदि कुआं हो तो धन की हानि होती है। परिवारजनों पर दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है।

यम का निवास चूंकि दक्षिण दिशा में यम का निवास होता है इसलिए भवन बनवाते समय दक्षिण दिशा की ओर कुछ जगह छोड़ देना चाहिए। इसके बाद भवन की दीवार बनाएं। दक्षिण भाग की चारदीवार भी भवन की दीवार से ऊंची होनी चाहिए।

आग्नेयमुखी दक्षिण भाग के द्वार आग्नेयमुखी हों तो चोर एवं अग्नि का भय रहता है। ऐसे भवन में रहने वालों के शत्रु बहुत होते हैं। दक्षिण भाग के द्वारा नैऋत्यमुखी हों तो कोई लाइलाज बीमारी होती है।

क्या करें भवन में दक्षिण दिशा का कोई दोष रह गया है तो उन्हें दूर करने के लिए दक्षिणी भाग की दीवारों को लाल रंग में रंगना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर लाल रंग का बल्ब लगाना चाहिए, जिसे शाम के समय नियमित जलाना चाहिए। दक्षिणी दीवार पर शीशा लगवाएं ताकि नकारात्मक ऊर्जा उससे परावर्तित हो सके। दक्षिण भाग में लाल रंग के सुगंधित फूलों के पौधे लगाएं।   

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